بلا عنوان

 

 गुरू बड़ा या भगवान 


ये कहानी स्त्री की है जिसका नाम है वैराग्यवती जो भगवान विष्णु की परम भक्त है 

और वो मंदिर में रहती है भगवान का पूजा-अर्चना करती है 

एक चोर ने वैराग्यवती को देखा सोचा स्त्री कितनी मासूम और भोली है इसको ठगा जा सकता है 

तो चोर बाबा जी बनकर वैराग्यवती को ठगने आया 

और बोला देवी एक गिलास पानी मिल सकता है वैराग्यवती पानी लेकर आयी तो बाबा जी (चोर) ने पूछा

तुमने कभी फिर ली हो हम बिना फिर लिए स्त्री के हाथ से पानी नही पीते है 

वैराग्यवती बोली मैने को कभी भिक्षा नही ली आप ही दे दो 

चोर ठीक है मै भिक्षा दूँगा लेकिन मै भिक्षा यहाँ नही दूँगा इसके लिए तुम्हे मेरे साथ जंगल चलना होगा 

वैराग्यवती मुझे जंगल जाने से कोई आपत्ति नही मै चलने को तैयार हूँ

चोर अपने गहने सोने चाँदी कपड़े सब ले लो और चलो मेरे साथ

वैराग्यवती ने सब लेकर चोर के साथ चल दी 

जंगल पहुँचने पर चोर ने वैराग्यवती को पेड़ से बॉध दिया और बोला इसको खोलना मत मेरा बाँधा बंधन है एक सप्ताह बाद आकर खोलूगा और सब गहने सोने चाँदी कपडे लेकर चला गया 


साम हो गयी वैराग्यवती के पिता अपनी पुत्री को ढुढते जंगल पहुचे 

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